पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/८७

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रहीम-कवितावली। प्रौढ़ा- सात- भोरहि बोलि कोइलिश्रा, बढ़वति ताप । घरी एक घरि अलिश्रा, रहु चुपचाप ॥ ७॥ - मुग्धा के भेद । अज्ञात- कौन रोग दौ' छतित्रा, उकैस्यो आइ । दुखि-दुखि उठत करेजवा लगि जनु लाइ ॥ ८॥ औचक श्राइ जोबनवा, मोहिं दुख दीन्ह । छुटिगो संग गोइअवाँ, नहिं भल कीन्ह ॥ ६ ॥ .. नवोढ़ा- पहिरत धूनि चुनरिश्रा, भूषन भाव । नैनन्हि देत कजरवा, फूलनि-चौव ॥ १०३ विलब्ध-नवोढ़ा- जंघन जोरति गोरिया, करति कठोर । छुअन न पावै पिशवा, कहुँ कुच-कोर ॥११॥ द्विविध-परकीया। . ऊढ़ा- सुनि धुनि कान मुरलिया, रागन-भेद । गै मन छाँड़त गोरिश्रा, गनत न खेद ॥१२॥ निसुदिन सासु ननंदित्रा, मोहिं घर घेरु । सुनन न देत मुरलिया, ना धुन टेरु ॥ १३ ॥ ८-१-दोनों, २-पैदा हो गया, ६-१-हमजोलियों का-सखियों का। १०-१-चुन करके, २-इच्छा , ३-चाह ।