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पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/९

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रहीम का परिचय।


है। सदा की बड़ाई और राजभक्ति एक चुटकी में समाप्त हो गयी। परन्तु जहाँगीर बड़ा दयालु था। उसने सं० १६८२ वि० में इनको क़ैद से छुड़ा दिया और जागीर देकर लाहौर भेज दिया।

राज्य-शासन किसी बलिष्ठ पुरुष के हाथों में न होने के कारण तथा और कोई बस न चलने से महाबतखाँ भी बाग़ी हो गया। उसने चाहा कि अधिक-से-अधिक सेना एकत्रित कर जहाँगीर को परास्त करके राज्य छीन ले। नूरजहाँ ने इसका समाचार पाते ही उसको पकड़ने के लिये खानखाना के साथ एक प्रबल सेना और असंख्य रुपया भेजा। खानखाना का स्वास्थ्य इससमय अच्छा नहीं था। मुसीबत भी कितनी अधिक पड़ चुकी थी। महावतखाँ के विरुद्ध जाते हुए संवत् १६८६ में इनका शरीरान्त हो गया।

इनका पारिवारिक जीवन भी कोई सुख-प्रद न था। इनके चार लड़के और एक लड़की थी। तीन इनकी विवाहिता स्त्री से और एक दासी से। सबसे बड़े लड़के का नाम शाहनवाज़खाँ था। यह अपने पिता के रंग-ढंग का था अवश्य लेकिन साथ ही अत्यन्त विषयी और सुरा-सेवी था। कहा जाता है कि अत्यन्त सुरा-पान से युवावस्था में ही उसका प्राणान्त हो गया। शाहनवाज़ के एक लड़की थी जिसकी शादी अन्त में शाहजहाँ के साथ हो गई थी। खानखाना के दूसरे लड़के का नाम रहिमान दादखाँ था। शाहनवाज़खाँ के