पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/९३

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. भाल । ४२ . रहीम-कवितावली। परकीया-खण्डिता--- जेहि लगि सजन सनेहिया, छुट घर बार । अपने होत पिरवा, साँच परार ॥ ४७ ॥ पौढ़हु पी पलाँगा, मीजउँ पाय । रैनि जगे कर निंदित्रा, सब मिटि जाय ॥ ४८॥ गणिका-खण्डिता- मितवा अोठ कजरवा, जावक भाल । लिहेसि काढ़ि बरिया , तकि मनिमाल ॥ ४६॥ ३-कलहान्तरिता। मुग्धा-कलहान्तरिता- श्रायहु अबहिं गवनवाँ, तुरतहि मान । अब रस लागि गोरिअवा, मन पछितान ॥ ५० ॥ मध्या-कलहान्तरिता- मैं मति मन्द तिरिअवा, परले भोरि । ते नहिं कन्त मनवैलेउँ, तोहिं कछु खोरि ॥ ५१ ॥ प्रौढ़ा-कलहान्तरिता- थकि गौ करि मनुहरित्रा, फिरि गौ पीव । मैं उठि तुरत न लायउँ, हिमकर हीच ।। ५२ ।। ४६-१-बरजोरी से । ५०-१-गौना। ५१-१-कर दिया, २-मनाया । ५२-१-मनको प्रसन्न करने की ।