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४८ रहीम-कवितावली। परकीया-प्रवत्स्यत्प्रेयसी- मितवा चलेउ बिदेसवा, मन अनुरागि। पित्र की सुरति गगरिया, रहि मग लागि ॥ ५॥ गणिका प्रवत्स्यत्प्रेयसी- पीतम एक सुमिरिनिश्रा, मोहि दै जाहु । जेहिं जपि तोर बिरहवा, करब निबाहु ॥८६॥ १०-आगतपतिका। मुग्धा-अागतपतिका- बहुत दिना पर पिशवा, पायउ आजु । पुलकित नवल बधुइमा, कर घर-काजु ॥ ८७. मध्या-भागतपतिका- पिश्रवा पौरि दुअरवा, उठि किन देखु ।। दुरलभ पाइ बिदेसिश्रा, जिनकै लेखु ॥८॥ प्रौढ़ा-भागतपतिका-- योबन प्रान पिअरवा, हेरेउ आइ । तलफत मीन तिरिश्रवा, जस जल पाइ॥८६॥ परकीया-आगतपतिका- पूछत चली खबरिया, मितवा तीर । नैहर खोज तिरिवा, पहिरि सुचीर ॥ १० ॥ गरिएका अागतपतिका- तौलगि मिटै न मितवा, तनकी पीर । जौ लगि पहिरिन छतिश्रा, नख-नग-चीर ॥ ११ ॥ ८६-१-सुमिरिनी-माला, २-बिरह । १०-१-पीतम।