पृष्ठ:रहीम-कवितावली.djvu/१००

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____बरवै नायिका-भेद। पुनः त्रिविध नायिका-भेद । उत्तमा लखि अपराध नयकवा, नहिं रिस कीन्ह । बिहँसत चंदन-चउकिया, बैठन दीन ॥ १२ ॥ मध्यमा- बिन गुन पित्र उर हरवा, उपटेउ हेरि । चुप द्वै चित्र-पुतरिया, रहि चख फेरि ॥३॥ अधमा- बार-बार गुरु मनवा, जनि करु नारि । मानिक औ गजमोतिश्रा, जौं लगि बारि ॥.६४ ॥ सखी के काम मराडन- सखिश्रन कीन सिंगरवा, रचि बहु भाँति ।। हेरति नैन अरसिश्रा, मुख मुलकाति ॥ ६५ ॥ शिक्षा- थके बैठि गोड़वरिया, मीजहु पाँउ। पित्र तन पेखि गरमिया, बिजन डोलाउ ॥६६॥ . उपालंभ- चुप ह्यौ रह्यो सँदेसवा, सुनि मुसुकाय । पिन निज हाथ बिरवना, दीन पठाय ॥ १७ ॥ १२-१-चन्दन की चौकी । १४-१-भारी, २-मान । १६-१-पैरों के पास, २-हवा। १७-१-वीरा-पान ।