राजविलास । १७५ दार छरिदार जोरि इतमाम जनावहि । जुरि सेन सेनपति जोहरिय काजी कुल्लि दिवान बर। कोत- वाल दूत सँधिपाल के दल बद्दल जनु साहि दर ॥१६६॥ ... कहि तब असपति कुप्पि सुनहु अवननि नवाब सब । कहो सोइ कीजिये अरि सु आवै न हत्य अब॥ मुरधर के मेवासि तेग बंधी हम सों तिन । हमहू अदब उथप्पि लरे हम महल मुलक्खन ॥ उमराव षांन उद्धसि के निधि छुट्टी दिल्ली नगर । हम सल्ल भंति सल्ले हिये पत्ते ते रिपु जोधपुर ॥ १६ ॥ • ॥ दोहा ॥ तिन कारन हम मन तुरित भंजन रिपु जनु भीम। काजी पूछहु बेगि के, सजें ब किन दिन सीम ॥१६८॥ करत प्रश्न दिन शुद्धि कहि, काजी पिक्खि कुरान। भद्दव सित दुतिया भली, सजो सेन सुलतान ॥१६॥ ॥ कवित्त ॥ . संवत्सर छत्तीस सीम सतरासें संबत । भव दुतिया धवल चढ्यो पतिसाह चंड चित्त ॥ दोय सहस गुरु दंति पंति जनु हल्लिय पब्बह। उभय लक्ख उत्तंग बाजि बर बेग सु सब्बह ॥ माराव नारि गोरह अधिक रथ जंत्री दो सहस रजि। ओरंग साहि झाडंबरहि सेन कादि पायक सु सजि ॥१७० ॥ . आवत सुनि मोरंग साहि दल बद्दल सज्जह । टुर्ग दास निगदेव कलह कारक कमज्जह ॥
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