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पृष्ठ:राजविलास.djvu/१८३

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१७६ राजविलास । आदि सकल रहौर भए इक मिक्क मंनि भय । मंत इक्क बर मते युद्ध जिहि भंति लहे जय ॥ रिपु दुछ धिट्ठ आरिट रिन चमू जोर पार्वत चलि । किज्जे ब जुद्ध कबिलेश सो टेक छंडि ज्यों जाय टलि ॥ १७१ ॥ ___जंपे ताम सुजानराय सोनिंग रहबर । ईश बाल अप्पने सुकल दुतिया जनु ससि हर ॥ सो न जोग संग्राम नृपति जसवंत सुनंदन । सुभट लरें प्रभु संक करें भारथ पिपु कंदन । अप्पन अनाह सबही सु सम हिंडहि अरि मुष किन हुकम ॥ तिन काज रांण श्रीराज सों मिलि रक्खे पित्री धरम॥१२॥ ___ए हिंदूपति आदि धनी हिँदवान धरमधर । इन सुबंस अकलंक षग्ग असुरान षयंकर ॥ इन सों मिलत न ए ब एह सरनागय बत्सल । कालंकित केदार नीति गंगा जल निर्मल ॥ नर नाह और इन से नहीं अप्पहिं रक्खन जो सुपहु । श्री राज रांण जगतेश सुन्न बंके बिरुद बदंत बहु ॥ १३ ॥ - 'अबल राय आधार सबल सुलतान सु सल्लह । सुरगिरिवर समतुल्ल अप्प अज्जज अडुल्लह । चित्र- कोट पति अबल जास इकलिंग ईसवर ॥ ब्रह्म वेद बाहरू उदधि जल दल आडम्बर । पुहवी प्रसिद्ध ए छत्र पति दुज्जन जन धन दल दमन ॥ श्री राज राण जगतेश सुभ राजे ज्यों सीता रमन ॥ १७४ ॥