पृष्ठ:राजविलास.djvu/१९

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'स । राजबिलास। पग पग जल जहं पाइयै, नदी तलाब निवान । सालि गोधुमा सेलड़ी, सर्पिष सुरभि सुषान ॥६॥ मौठ मसूर माषा मुदग, जौ बहु चना रुहार । धान नीपजै जिहिं धरा, अमित अमाप अपार ६॥ कवित्त। हद्द न्याय हिँदवान राण श्री राज सुराजहिं । पिशुन चोर पिल्लियहि न्याय करि साधु लिवाजहि ॥ वसै सकल सुषवास गाम पुर नगर काट गढ़ । सुन्दर रूप सुजान सधन नर नारि सुकृत दृढ़ ॥ तीरथ तलाप तटनी तहां निशि वासर निरभय निगम ॥ मव देश देश देखे सु परि देश न को मेवार सम ॥ ६८ ॥ हनूफाल । मालउ मरु मेवात, मुलतान मरहठ मात । महि मगध मध्य मडाण, ठिक करिग पेषी ठाण ॥७॥ ___राक आरब अच्छ, कहि अंग बंगरु जच्छ । कर्णाट पुनि कंबोज, चषु दीठ चित करि चोज ॥११॥ कासीरु दीठ कलिंग, बैराट बब्बर संग। कुरु कासमीर कहाय, देखंत नांव हि दाय ॥ ७२ ॥ कौसलरु कौंकण किद्ध, दिल कांवरू दिशि दिद्ध। धायौ धंधेरा धाट, लिषि लये लाडरु लाट ॥ ७३ ॥ रहि दीठ हबसी रूम, भिलवारिभाट सु भूम । पंधार षग षुरसाण, गंधार नैं गुंडवाण ॥ १४ ॥