पृष्ठ:राजविलास.djvu/१९४

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राजविलास। १८७ ॥ दोहो॥ हिन्दू पति फुरमान यों, बंचिहु तिय बरजोर । अप्प दयो फुरमान इह, साहि करो किन मोर ॥१५॥ ॥ कवित्त ॥ जरहि यान तुम जिते इक्क दिन तिते उठावहिं। पालम प्रथम उथप्पि बहुरि औरहि बैठोवहिं ॥ मेद पाट महि रज्ज सहस दस गाम ईश बर। एक- लिंग अम्ह दिये कबहुं नावै किनही कर। आवो. असुरेस अनेक इहि कहि बंधि सूधे करें ॥ राजेश राण कहि साहि सुनि तोयधि यों भुजबल तिरें ॥ १६ ॥ ___ऊजर करि अग्गरो धाइ लाहोर लेहु धन । दिल्ली करो दहल्ल तोरि तुम तखत ततष्पन ॥ अलवर नरवर आइ थान थप्पै रिनयंभहिं । उज्जैनी पाहनों धार मंडव हनि डिभहिं ॥ गुजरात देश लै दंड गुरु सज्जों दल सोरठ सकल । राजेश राण कहि साहि सुनि तुल्लों यों सुरगिरि अतुल ॥ १७ ॥ दोहा॥ रोस राण परवान को, बंचत बढ़यो बिशेष । तृनिय बहुरि फुरमान तिन, अप्पा बहु असुरेश ॥१८॥ ॥ कवित्त ॥ श्री पुर तुम संहरयो कॉप हम बिलय सु किन्नह । रूप पुत्ति रहुवरि लग्गि हम सो फुनि लिनह ॥