पृष्ठ:राजविलास.djvu/१९३

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१८६ राजविलास । राजेश राण कहि साहि सुनि महि उपगार बड़ो मरद ॥ १० ॥ ॥दोहा॥ गयो अनुग अजमेर गढ़, असपति कर फुरमान । दोनों हिन्दु दिनेन्द को, बीरा रस बाखान ॥ ११ ॥ बंचि बंचि दिल्लीश बर, बाढ्यो रोस बिशेष । फेर दुतिय फरमान दिय, नागद्रहा नरेश ॥ १२ ॥ कवित्त ॥ मिडि देश मेवार कोट गढ़ ढाहि ढेर करि । भाऊ उदयापुरहि गाहि हय गय पानि गिरि ॥ रावर रावत राइ आइ फिरि हे जे अड्ड । संहरि तिन संग्राम यवन धर थप्पो जड्ड । जरि थान थान थाना यतन रुधि राह चहुं कोद रुष । राजेश राण सुलतान कहि मंडय का हम सेन मुष ॥ १३ ॥ तोयधि भुज बल तिरै कवन तुल्ले गिरि कद्यहि । पावक को मुंह पिवै सिंह सनमुष रिन सद्यहि । महि को यंभय मरुत नाग कहु कवन सु नत्थय । गयन षंभ को देय सोब जित्तै हम सत्यय । हठ छडि अलिय इन देहु, हम सीख कहा तुम सिक्खवें । राजेश राण सुलतान कहि अनम सोइ हमसों नवें ॥ १४ ॥