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पृष्ठ:राजविलास.djvu/२००

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राजविलास। मेद पाट पत्तो सुअहि, चढ़ि औरँग असुरेश । बोलि सकल उमरावबर, राण तदा राजेश ॥५२॥ छन्द पद्धरी। रस राजनीति राजेश राण । दरबार जारि बैठे दिवान ॥ छाजत शीश नग जरित छत्र । पढ़ि उभय चौर उद्यल पवित्र ॥ ५३ ॥ हय हत्थि पयद्दल मिलि असंख । जिन सजत दिल्लिपति होइ झंष । महाराय सबल पद धरन धीर । बोले सु ताम अरि मीह बीर ॥ ५४ ॥ जय सीह कुपर बोले सुजान । भल हलत तेज 'जनु जि भान ॥ भल भीम रूप भीमह कुमार । बोले सु जंग बहु जैतवार ॥ ५५ ॥ रावर सु बोलि जस करन रंग । असुरेस सल्ल अन मी अभंग । भल मंत भेद धर भाव सिंघ । राना उत रक्खन जोर रिंघ ॥ ५६ ॥ महाराय मनोहर सिंघ मान । गिरि मेर नंद : गिरिवर गुमान ॥ दल सिंह सिंह रिपु दलन दुह। कंकाल कलह जनु काल कुछ ॥ ५७ ॥ भगवंत सिंघ कुंवर समाग । बर फते सिंघ गुरु पाग त्याग ॥ सु गुमान सिंघ अरि सिंघ नंद । दर- बार आइ जनु ससि दिनेंद ॥ ५८ ॥