पृष्ठ:राजविलास.djvu/२३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राजविलाम। २२५ बज्जे बंबक बज्जने बढ़ी सकल मय बात । भीमसिंह कूअर चढ़ मारन धर गुजरात ॥ ४ ॥ हय गय रथ पायक सजे, सजे सकल उमराव । थैतुगा फौजें मिली ज्यों मलिता दरियाच ॥ ५ ॥ बोलत बहु बिरुदावली ढुरत चौंर दुहुं ओर । चढ़ बाजि चंचल चतुर भीम कुंवर दल जोर ॥६॥ ॥ कवित्त ॥ ___ भीम कुंवर दल जोर चढ़ गुज्जरि धर मारन । कटक बिकट भट उभट सुथट गज घट भट चारन । बोलत बहु बिधि विरुद मरद भंजत भालम मद । गुर पगार मेवार सर सुप्रताप ऊंच पद । जय कारज़ धार अपार युध दृढ़ प्रहार करवार कर । जगतेश राण राजेश के तो सूको मंडे समर ॥ ७ ॥ अंबर धर आवरिय रंग भंखरिय रजंबर । धारा- धर धुंधरिय दुरिय दुति चंड दिवायर ॥ बढ़ी हेष पर हेष बहरि बबरि कल रव बहु । सुनियत सद्दन श्रवन जह हय गय रथ गहमहु ॥ अनुसरत इक इक अग्ग पग उमग मग्ग परि भरि अवनि । सजि चढ्यो सेन गुज्जरि सधर भीमसेन ज्यों भीम भनि॥॥ ___भई भूमि भय कंप पचलि पर धर पुर पत्तन । होत कोट संलोट गिरत गढ़ दुर्ग गाढ़ घन ॥ दिशि दिश उहि दहक्क भुक भय गुरु थर, भक्खर । सर स- लिता इह मुक्कि रुक्कि दर राह. धरद्धर ॥ थरहरिय