पृष्ठ:राजविलास.djvu/२३६

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रामविलास : २२९ ॥ कवित्त ॥ ईडर दुर्ग उजारि पारि किन्नो धर पद्धर । खंखे रिय खनि खादि किए मंदिर तर उप्पर ॥ ढंढोरिय हटश्रेणि कोन कल्लें कर कप्पर । श्री फर सार कि- रान ठेलि अन धन पय ठिप्पर ॥ नठो सु सैद हासा निलज गुरु नवाब छंडेव गढ़ । जय कीन राण राजेश के भीमसेन रक्खी सुरढ़ ॥ ८ ॥ ईडरगढ़ उद्धंसयो, सुनी सकल संसार । भीमराण राजेश के, कूवर कुल शृंगार ॥ ३० ॥ पच्छिम निसि पतिसाह दर, परिय सुकरल कराह । कोन नींद आलम कबिल, सोए तुम पतिसाह ॥३१॥ भीमराण राजेश को, कूवर कोपि कराल । ईडरगढ़ लीनो प्रचल, चढ़ि दल किय ढकचाल ॥३२॥ हंस सैद हहरंत हिय, नट्ठो अप्प नवाब। . अब सुजात गुजरांत धर, करहु इलाज सिताब ॥३३॥ ॥ कवित्त ॥ सुनि सुकह सकराल रेनि पच्छिली श्रवन सजि। उझकि चोंकि औरंग उठ्यो दिल्लीश नोंद तजि ॥ निकट बुलाइ सुदूत बहुरि बुझे दिल्लीबर । कितक सत्थ सो कुवर अक्खि तिन दल अपरंपर ॥ ईडर उजारि सुप्रचारि दिय उजरि देश गुज्जर मुधर । सोरठ सिंधु सोबीर लो भीमसून कवर मुंडर ॥ ३४ ॥