पृष्ठ:राजविलास.djvu/५

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उसने प्रथम दो महाराजों को धोखे से (टाड साहेब के लेखा. नुसार ) विष दिलवा कर मरवा डाला और यशवंत सिंह के कई एक पत्रों को भी धोखे ही से मार हाला। महाराजा यशवन्त सिंह का केवल कई मास का एक बालक पुत्र (अजित सिंह) बच गया था । औरंज़ेब ने उसे भी हथियाना चाहा । परंतु उस बालक की माता मेवार की राजकन्या थी। इसी रिश्ते से उस बालक की माता ने मेवार पति महाराणा राजसिंह की शरण ली । राजसिंह ने बालक अजित सिंह को अपने पास बोला लिया और उसकी रक्षा की। राज सिंह पर औरंगजेब की ख़फ़गी का यही मुख्य कारण था । इम के पहिले ही रूप नगर की राजकुमारी प्रभावती पर औरंगजेब मोहित हुआ था और उसके साथ विवाह करना चाहना था । विवाह होने ही को था, और कुछ शाही सेना भी रूप नगर तक पहुंच चुकी थी कि उक्त राजकुमारी ने राज सिंह की शरण ली, और राजसिंह ने शाही सेना को मार काट कर उक्त राजकुमारी का उद्धार करके उसके साथ विवाह कर लिया । इससे औरंगजेब चिढ़ा हुआ था ही । बस अजित सिंह को शरण देने से नमके क्रोध का पारा १०८ डिगरी से भी अधिक ऊंचा चढ़ गया और राजसिंह पर हल्ला बोल दिया गया । महाराणा राजसिंह भी उन दिनों जवानी की उमंगों पर थे । सच्चा और उच्च कुलीन क्षत्रिय रक्त उनकी नमों में दौड़ रहा था। उन्हों ने भी कमर कस कर औरंगजेब का मुकाबला किया और ऐमी धीरता और निपुणता से युद्ध किया कि औरंगजेल के दांत खट्टे हो गये। इसी युद्ध का वर्णन इस ग्रन्थ में किया गया है।