पृष्ठ:राजविलास.djvu/६२

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राजबिलास । अपरि गीत व्याम दुदुही सु बज्जय । पल मंदिर पर हरिय धमकि आसु रि धर धुज्जिय । गिरि परिय ताम तुरकनि गरभ यवन करत केऊ यतन । जगतेश रान घर सु त जनम राजसिंह राना रतन ॥१४॥ जगतेश रांन घर सुत जनम ।धर हरिय असु र धर तबहि धंम । गिरि परिय ढरिय यवनेश गेह । खल नगर शीश बरसत ह ॥ १५० ॥ ___अति इंद्रलोक मंड्यो उछाह, सुर कहत सद्द जय जय सराह । गावंत मधुर अच्छरि सु गान वज्जंत देव दुदु भि विमान ॥१५१ ॥ दीनी सु बधाई दासी दोरि। गय गमनि हसित मुषि जानि गोरि । यहु सुनत ताहि कोने पशाव । झिगमिगत अंग भूषन जराव ॥ १५२ ॥ __बर विविधि घोष नौवति सु बज्जि, गगनहि गंभीर प्रति सद्द गज्जि । गावंत नारि साहव सुगीत, पटकूल पहिर भूषन सुपीत ॥ १५३ ॥ ___वीती सु निसा प्रगट्यो विहान, झलहलत तेज उग्यो जु भान । रस रंग चित्त जगतेश रान, दीन्हें अनेक हय गय सु दान ॥ १५४ ॥ ___रुपि जन्म गेह रंभा रसल, बहु लंब अब पत्रहि विशाल । बंधनह मुक्ति तव बंदिवान, हरखे सु लोक सब हिंदुथान ॥ १५५॥