पृष्ठ:राजविलास.djvu/७२

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राजबिलास। 'दोहा। सत्य वचन अवनीश सुनि, मंनि सु मंत्री मंत। समझि रांन जगतेश सुन्न, कन्या योगहि 'कंत ॥२४॥ निश्चै ईह अखै नपति, कुलमनि राजकुंभार । हमहू मन याही सुमति, सगपन यह श्रीकार ॥२५॥ प्रागै हू इन अप्पनैं, सगपन सरस संबंध । ए आहुट्ठ अनन्त बल, बंधन मेछहि बंध ॥ २६ ॥ रूपवती दुति जानि रति, गुरु पुत्री हम गेह । राज कुंभारहिं रीझिक, सा हम दई सनेह ॥२॥ यों कहि स अवनि पति, जे वर योतिस जान । लिखे सु पानि गहन लगन, कारन कारि कल्यान २८॥ लिखसु तबहि नप लिक्खें, योग्य रांन जगतेश । बधै प्रीति ता बांचतें वायक बिने विशेश ॥ २६ ॥ छन्द पद्धरी। स्वस्ति श्री उदयापुर सुथांन, रवि हिन्दवान जगतेश रांन । कालंकि राय कट्टन कलंक, बंकाधि- राय कट्टन सुबक ॥ ३० ॥ प्राजान बाहु अनमी अभंग, आचारि राय रवि कुल उतंग। मेवासिराय भंजन मेवास, तुरकेश बंधि दीजे यु त्रास ॥ ३१ ॥ प्राहुह राय दल बल असंक, झूझार रोय रिपु .करन झंख । आजेज राये नत्थे अनत्थ, सामंत राय सेना समत्थ ॥ ३२ ॥