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पृष्ठ:राजविलास.djvu/७६

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राजबिलास वारि महिपाल रनहिं रठौर रढालह । निपुन बुद्धि बर न्याउ प्रवर स्व प्रजा प्रतिपालह ॥ इक दिनहिं दोइ पठए अनुग सदल सज्ज श्री फल सुकर । इक पत्र उदय पुर बर उमगि पत्ता इक्व सुयोध पुर ॥ ५४ ॥ दोहा। मोहित भेटे हिन्दुपति, जगत सिंह बरजोर।। राण तषत राजै रघ, उभय चौँर दुहुं ओर ॥५॥ बेठे निज निज बैठकहिं सुभट राय साधार । हय गज रथ पायक हसम, पिरवत नाँवहि पार ५६॥ अखिय बिन प्रासीस इह, जय नुराँण जगतेश । चिर जीवहु चीतौर पति, बंछित फलहु विशेष ५७॥ कवित्त । पुच्छे यो महिपाल राँण जगपति जग रखन । कहो बिप्र तुम कहाँ बास बर नगर बिनखन ॥ किन भूपति संदेस केन कर्जे इत आए। अखहु सकल उदन्त पास हम किन सु पठाए ॥ कहि बिन बास हम बुन्दि गढ़ हाडा रावहिं मुक्क लिय । तिन पुत्रि दई प्रभु कुंभर प्रति रंगरसाल सुमनरलिय ॥ ५८ ॥ दोहा। सुनि हरषे जगपति श्रवन, सगपन जानि सुमंत । भली मंडि.मोहित भगति, सादर करिग अनंत