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पृष्ठ:राजविलास.djvu/७८

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राजबिलास । प्रधान सज्जि दंति पंति सेन अग्ग संचला। सिंदूर पूर जात सोश चारु चौर चंचला ॥ ६६ ॥ सुमुत्ति माल बिंटि कुंभ सोहए सु सिंधुरा । ठनं ठनंकि घंट घोष घं घमंकि घुघरा ॥ मदानमत्त धत्त धत्त पील वॉन पट्टयं । चरखि दार कुक्क ए गयन्द जोर गट्टयं ॥ ६७ ॥ सु बास दान गच्छ सूच्छ गुञ्जए मधूपयं । सुण्डाल माल के बिकाल उद्धतं अनूपयं ॥ मनौं महन्त मेघ माल हल्लई हरें हरें। बदंत के विरुद्ध बंदि भूमि पाइ जै भरें ॥ ६८ ॥ झिलन्ति रंग रंग झूल पट्ट कूल पेसलं । ढलकई सुपुट्टि ढाल ढंकि बास उज्जलं ॥ पताक लील रत्त पीत सोहई स चिन्हयं । सु ददृ दन्त कति सेत काय सैल किन्हयं ॥ ६ ॥ हयं सु बंस जाति हंस कासमीर कच्छि के।। कबिल्ल के कंबोज के बिकाकनी सु लच्छि के ॥ उतंग अंग प्रारबी भैराक के उवन्नयं। सु पौंन पानि पन्थ के यु पाइ ज्यों पवनयं ॥७॥ बंगाल देश के सुबेश साजि बाजि सोचनं । कुरंग फाल उच्च षन्ध लोल. लोल लोयनं ॥ नृतत्व येइ येइ नत्य नट्ट ज्याँ सु नच्चई । दिनेद जास-रूव देखि रथ काम रच्चई ॥ ११ ॥