पृष्ठ:राजविलास.djvu/८०

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राजबिलास । घुरंत दंति पुटि घोष नोवती निसान जू । सु गद्यि व्योम जास सद्द षोनि षोभ मान जू ॥७॥ चढे तुरंग चंचलं कुंभार राज काम से । ' सु सेहरा बिराजि सील ई साभिराम से । ढुरंत चौर दिग्ध चारु वारि धार वर्णयं । उतंग रूप प्रातपत्र दंड जा सुवर्णयं ॥ ७८ ॥ अनेक राय जूथ सत्य पत्य से समत्थ है। वहै बिरुद्द बंक वीर हेम र्दैन हत्थ है ॥ दिनेश कति दिग्घ देह दुह सेन दावटें । अडोल बोल आखनै अनंत ते असी झX ॥ ८ ॥ सलक्कि सेस सेन भार कुम्भ संक सक्कई । प्रकंपि मेरु पव्वयं धरातलं धसक्कई ॥ झलकि सिंधु नीर जग्गि ईस जोग आसनं । रविंद बिंब ढंकि रेतु संकि पाकसासनं ॥ ८ ॥ उमग्ग मग्ग सैल भग्ग भग्गि भूमि प्रासुरी। बजै सु षोनि वाजि बेग बिद्यु जो षिवे षुरी ॥ मिवास यांन मुक्ति मिच्छ भग्गि मंनि तं भयं । सरोवरं सलित्त सुक्ति सिंधु नीर सोसयं ॥१॥ महंत सेन यों उमंडि जों पयोद पावसं । न वुष्भीयेस्व प्रान मांन है दलं चहै। दिसं ॥ क्रम क्रमै करंत कूच मंडि के मुकामयं । संपत्त राज विंद सूर बुंदियं सुठामयं ॥ २ ॥