पृष्ठ:राजविलास.djvu/८१

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राजबिलास। कबित्त । ____ संपत्ते सजि सेन कुँमर श्रीराज कुमारह । बुदी बढ़िय अबाज हरषि हाडा परवारह ॥ छत्रसाल महा- राव सेन चतुरंगनि सज्जिय । हय गय पयदल हसम राज बरसन सुख रज्जिय ॥ संपत्त तबहिं फुनि राठ- वर जसा कुवर गजसिंह सुव । वर पानिगृहन को विहसि धीर वीर रिनधर सु धुव ॥ ८३॥ दोहा। उभय राज बर लगन इक, कन्या उभय सु कज्ज । पत्ते नियनिय दल पचुर, कैलपुरा कमधज्ज ॥४॥ कवित्त । उभय राज वर अनम उभय रिनधीर अनग्गल । उभय जोर अहंकार उभय अति रोस महद्दल ॥ उभय व्याह इह प्रथम उभय हठवंत हठालह । उभय अगंज अभंग उभय वायक प्रतिपालह ॥ इक मक्कि भये बुदी उभय हाडा दरबारहि हरषि । श्रीराज कुंभार महासबर, नाहर ज्यों कमधज निरषि ॥ ८५ ॥ दोहा। नाहर ज्यों नाहर निरषि, कापहि हात कराल । त्योंदुहुंभापस में सु तकि, लोयन करिय सु लाल ॥६॥ कवित्त । लोयन करिय सु लाल कही कमधज्ज कहा- निय। हम नरनाह अनादि हद रक्खन हिंदवानय ॥