पृष्ठ:राजविलास.djvu/८२

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राजबिलास । हमसे कोइ न हठी होड हम किन पैहल्लय। संग्रामहि हम सूर दुट्ट दानव पय डुल्लय ॥ बंदिहुं प्रथम तोरन बिहसि तरकि कलहंतन करो । अति लुंग सिषर धर वर अचल पूरब तै पछिम धरौं ॥ ८ ॥ दोहा । पूरब गिरि पच्छिम धरों, ही कमधज्ज हठाल । बंदहु तारन अप्यवर, कहा किये विढ साल ॥८॥ कथन एह कमधज्ज के, सुनि श्री राजकुमार । हुंकरि यप्पि स्वकंध हय, बोले यो बबकार ॥८॥ कवित्त । कब के तुम नर नाह कहै। कमधज्ज कहानिय। जीति कहा तुम जंग हद्द राखी हिं इवानिय ॥ तुम प्रासुर साधीन धीय दै धरनि सु रक्खहु । इन करनी हम अग्ग,उंच मुह करि करि अक्खहु ॥ पच्छे यु पाउ धरने नहीं, अग्ग आउ चौगान महि । पुरुषातन अद्य परेखिये कुप्पि सुराज कुमार कहि ॥ ८ ॥ दोहा। कुप्पिय राज कुंभार रिन, अभिनव ग्रीषम अग्गि कटुक रूप कमधज्ज के, बचनहि बचन विलग्गि ८१ कवित्त - बचनहि बचन विलग्गि, सूरनिय निय संमाहिय। बजि सिंधु म्हनाइ, ईश युग्गनि उमाहिय ॥ छुट्टि