पृष्ठ:राजविलास.djvu/८४

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राजबिलाभ। रढनिय इहि परि रखि बंदि तोरन बर बीरहि। श्रीबर राजकुमार सरसि सोभा सु सरीरहि ॥ घन ज्यों त्रंबक घुरत बिरुद वंदी बहु बुल्लत । हय गय रथ बर थट्ट परज पिखत बहु अद्भुत ॥ लखिए न बैर तिहि अप्प पर मनु नर सायर उल्लटिय । गावंत गीत गोरी गहकि तांन मांन नव नव थटिय ॥ ७ ॥ दोहो। ता पाळे कमधज्जनें, बंदिय तोरन वार । उभयराज वर ईद ज्यौं, बरसै कंचन धार ॥ ८ ॥ कबित्त । बरसै कंचन धार गज्जि घन ज्यौं बुंदी गढ़। परनि मिया पदमनी रधू राखी सु अप्य रट ॥ राजकुली छत्तीश मध्भ नायक मुछालह । शीशोदा बर सूर कुंअर राजेशर ढालह ॥ . जसवंत परनि कमधज्ज कुल नायक नप गजसिंह सुत। हाडा नरिंद मंड्यौ हरष संतोष षट वरन युत ॥ देहा। वर संतोषे षट वरन, हृदय सु पूरिय हांम । छत्रसाल वर राव छिलि, देत दाइजै दाम ॥१०॥ कबिता ___ देत दाइजै दाम हत्थि हय हेम सज्ज सजि । सज्जि, सार सुखपाल सेझ बाले सु वृषभ रजि ॥ दासी