सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजसिंह.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चौथा दृश्य (स्थान रूपनगर का महल । कुमारी चारुमती और उसकी सखी निर्मल । समय-प्रात:काल) निर्मल-अब उपाय ? चारुमती-उपाय तेरा सिर । निर्मल-अच्छी बात है, दिल्लो मैं भी चलूगी। चारुमती-किस लिये? निर्मल-देगी, राजपूत की लड़की कैसे उस हत्यारे बादशाह की बेगम बन कर कोनिस करेगी। चारुमती- उस दिन मैंने उसकी तस्वीर पर लात मारी थी। निर्मल-मारी तो थी। चारुमती-उस लात से उसकी नाक टूट गई थी। निर्मल-शायद टूट गई थी। चारुमती-दिल्ली चलकर मैं अपनी उसी लात से आलमगीर के खास रंगमहल में ही उसकी नाक तोड़गी। निर्मल-तोड़ सकोगी? चारुमती-राजपूत की बेटी की लात है यह । निर्मल है तो, परन्तु लात से नाक ही तोड़नी है, तो एक उपाय करना होगा।