पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१२२

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श्य] तीसरा अंक १०७ राणा-तो आप सब सरदारों की यह राय है कि राजकुमारी की प्रार्थना स्वीकार कर ली जाय । सब-अवश्य। राणा- चाहे भी जिस मूल्य पर । सब-(तलवारे खींचकर ) यह लोहा राजपूतों का धन है, इसी के मूल्य पर। राणा-(तलवार सूतकर ) शरणागत अभय । ब्राह्मण, राज- कुमारी से जाकर कह दो कि हम प्राण देकर उसकी रक्षा करेंगे। अनन्त मिश्र-धन्य महाराणा, धन्य क्षत्रियवीर, धन्य वीरेन्द्र (आगे बढ़कर मोतियों की माला राणा के गले में डालकर) आप की जय हो । महाराज, राजकन्या तन, मन से आपको वरण कर चुकी है। यद्यपि रूपनगर का घराना आपके समक्षति साधारण है, फिर भी महाराज, वह पवित्र सोलंकियों की गद्दी है । उस कुल में अभी दाश नहीं लगा है। राजकन्या चारुमती रूप-गुण-शील में सब भाँति श्रीमानों के योग्य है-अब आप चलकर राजकुमारी को विधिवत् व्याह कर अपनी सेवा मे लें। जिससे धर्मपूर्वक आप उसकी रक्षा के अधि- कारी हों। सब-साधु । साधु । यह प्रस्ताव बहुत उत्तम है।