पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१२१

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राजसिंह [पाँचवाँ रक्त से लाल हो जायगी । मेवाड़ पर यह विपत्ति केवल एक बालिका के लिए लाना क्या बुद्धिमानी की बात होगी? रावत केसरीसिंह-मर्जी पाऊँ तो अर्ज करूँ। सेवक की दृष्टि मे कर्तव्य-पालन के लिए हानि-लाभ नही देखा जाना चाहिये। सिद्धान्त पर मर मिटना वीरों की परिपाटी है। लोहू और लोहा, यही नो राजपूतों की सम्पत्ति है और मृत्यु उनका व्यवसाय । महाराज, इसमे राज- नीति हमें बचा नहीं सकती। रही आलमगीर के आक्रमण की बात । सो महाराज वह तो आज नहीं तो कल होगा ही। बादशाह बहाना खोज रहा है और मेवाड़ उसकी आँखों में शूल सा चुभ रहा है। वह मेवाड़ को विधंस करेहीगा और एक बार हम उससे लोहा लेंगे ही। वह कल न सही श्राजही सही। राणा-(मुस्करा कर ) वह तो सत्य है । परन्तु अभी हमारी तैयारी में कमी है। अपनी तैयारी होने तक यथा- सम्भव युद्ध को टालना हमें उचित है। कुंवर भीमसिंह-श्रीमानों की आज्ञा पाऊँ तो अर्ज करू । हम युद्ध को निमन्त्रण नहीं दे रहे । न किसी पर अत्याचार कर रहे हैं। हम केवल अन्याय और अत्याचार का विरोध कर रहे हैं। यह भी हम न करें तो हमारा राजपूत जीवन ही धिक्कार के योग्य है