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पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१२४

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दृश्य तीसरा अंक १०६ तब राजकुमारी की रक्षा का क्या उपाय होगा । वह तो फिर भी बादशाह के हाथ पड़ रहेगी। माधवसिंह-हमे ऐसा उद्योग करना चाहिए कि बादशाह की सेना के रूपनगर पहुँचने के पहिले ही हम रूपनगर से कुमारी का उद्धार करके लौट आवें। राणा-यह तो असम्भव है। आज चौदस है पंचमी को विवाह का मुहूर्त है। हम यदि रात दिन कूच करें तो ४ दिन मे पहुंच सकते हैं । परन्तु समस्त सेना को लेकर इस प्रकार धावा मारना हो ही नहीं सकता-रास्ता ऊबड़ खाबड़ और दुरूह है। दीवान फतहसिंह-एक युक्ति है। राणा-वह क्या ? दीवान फतहसिंह-श्रीमान् थोड़ी सी सेना लेकर रूपनगर जाकर कुमारी को ब्याह लावें,और कोई वीर सरदार मेवाड़ी सेना को लेकर रूपनगर और दिल्ली मेवाड़ के तिराहे पर शाही सेना को रोक रखे। सब-यह युक्ति बहुत उत्तम है। राणा-परन्तु कौन ऐसा वीर है जो इतने अल्प काल में ऐसे संकट को सिर पर ले। (सब सन्नाटा मारते हैं) राणा-क्या कोई वीर सरदार इस सेना की सरदारी स्वीकार कर सकता है। (सर सल्भारे में रक्षाले हैं)