पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राजसिंह [पाँचवाँ कुवर भीमसिंह-(खड़े होकर ) महाराज, यदि मेवाड़ में सभी सरदार वचनशून्य हैं तो इस सेवक को आज्ञा रत्नसिंह-अन्नदाता की जय हो । यह सेवा मैं करूँगा। (सब धन्य धन्य कहते हैं) राणा-रत्नसिंह, तुम इस अल्पवय में यह असाध्य कार्य करोगे? नहीं मैं तुम्हें यह जोखिम का कार्य नहीं दे सकता। रत्नसिंह-दुहाई अन्नदाता ! चूड़ावतों का यह जन्मसिद्ध अधिकार है। महाराज, मैं बीड़ा उठाता हूँ। राणा-परन्तु वीरवर इस काम में बहुत उत्तरदायित्व है। रत्नसिंह-मैं समझता हू महाराज राणा-शत्रु बहुत प्रबल है, उसकी सेना अनगिनत है। रत्नसिंह-सिंह गीदड़ों की भीड़ की चिन्ता नहीं करते। राणा हमारी सेना बहुन थोड़ी है और उसे तैयारी का समय बिल्कुल नहीं है। रत्नसिंह-हमारा सदुद्देश्य और तलवार यही काफी है। राणा-परन्तु सुनो। कल्पना करो तुम बादशाह की सेना को न रोक सके, तो हमारा सभी प्रयत्न निष्फल होगा। रत्नसिंह-(सलधार छूकर) महाराज, मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि जब तक श्रीमान कुमारी को ब्याह कर सकुशल उदयपुर न लौटेंगे मैं शाही सेना को आगे न बढ़ने दूंगा- मैं मरूँगा, न गिरूँगा। सब-धन्य वीर! धन्य!.