पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१२९

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११४ राजसिंह [छठा रत्नसिंह-एक बार सौभाग्यसुन्दरी-कहिये ? रत्नसिंह-तुम्हें मैं प्रिये कहकर पुकारूँ। सौभाग्यसुन्दरी-लजाकर) पुकारिए। रत्नसिंह-बिना अधिकार प्राप्त किये ? सौभाग्यसुन्दरी-अधिकार कैसा? रत्नसिंह-पत्नी का। सौभाग्यसुन्दरी-अधिकार तो प्राप्त हैं। मैं आपकी मन-वचन से दासी हूँ। रत्नसिंह-ठीक है, पर धर्म से नहीं। सौभाग्यसुन्दरी-क्यों ? मेरा आपका वाग्दान हुआ है । मैं धर्म से आपकी हूँ। रत्नसिंह-फिर भी विधि तो नहीं हुई। सौभाग्यसुन्दरी-वह भी समय पर हो जायगी। रत्नसिंह-अब समय नहीं है, कुमारी ! सौभाग्यसुन्दरी-आह इतने कातर न हों। रत्नसिंह-सुनो कुमारी ! सौभाग्यसुन्दरी-कहिए। रत्नसिंह-मैं क्षत्रियकुमार हूँ। सौभाग्यसुन्दरी-हाँ। रत्नसिंह-और तुम क्षत्रिय-बाला। सौभाग्यसुन्दरी-हाँ।