[5] पत्र लिख कर राणा को विष देने का षड्यंत्र रचा पर भेद खुल गया, और राणा ने पुरोहित और रानी दोनों को भरवा डाला। इस पर कुँवर सरदार सिंह स्वयं जहर खाकर मर गया। चारण उदयभानु ने राणा की निन्दा में कविता सुनाई इससे क्रुद्ध हो उसे मरवा डाला। इन हत्याओं के निवारणार्थ उसने ब्राह्मण से उपाय पूँछा और उन्होंने उसे विशाल तालाब बनवाने की सलाह दी। परन्तु कुछ लोगों का यह भी ख्याल है कि अकाल पीड़ित लोगों को सहायता देने के विचार से यह तालाब बनाया गया। सन् १६६५ की १७ अप्रैल को पुरोहित गरीबदास के पुत्र रणछीर राय के हाथ से पंचरत्न के साथ नींव का पत्थर रखवाया गया, और सन १६७१ की ३० जून को नाव का मुहूर्त किया गया। फिर सन् १६७४ में लाहौर, गुजरात और सूरत का बना हुआ जहाज डाला गया और सन् १६७६ की १४वीं जनवरी को प्रतिष्ठा का कार्य शुरू हुआ। अष्टमी को राणा ने उपवास किया, और देह शुद्धि प्रायश्चित्त आदि कर नवमी को अपने भाइयों, कुँवरों, रानियों, चाचियों, पुत्रबन्धुओं, कुटुम्बियों और पुरो- हित गरीबदास सहित मण्डप में प्रवेश कर देव पूजन कर हवन किया। उस दिन राणा ने एक मुक्त रहकर रात्रि जागरण किया। दूसरे दिन नंगे पैर पैदल सपरिवार परिक्रमा की। ५ दिन में १४ कोस की परिक्रमा समाप्त कर पूर्णिमा को पूर्णा- हुति दी और अपने पोते अमरसिंह को साथ बैठाकर स्वणे का तुलादान किया। इस तुला में १२००० तोले सोना चढ़ा। उसी दिन सप्तसागर दान किया। पटरानी सदाकुँवर ने चाँदी की तुला की। पुरोहित गरीबदास ने सोने की की। गरीबदास के पुत्र रणछोड़राय, राणाकेसरीसिंह पारसोली वाले, टोडे के रायसिंह की माता और बारहट केसरीसिंह ने चाँदी की तुलाएँ
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