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पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१५३

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१३८ राजसिंह [पहला रामसिंह-आपकी इतनी मजाल । आप राजा से ऐसी बातें कहते हैं? विक्रमसिंह-क्यों नहीं । एक तो मैं राजा का काका, दूसरे मेरी प्यारी यह तलवार जब तक मेरे पास है-निर्भय सत्य कहूँगा । उसे तुम रोक न सकोगे। रामसिंह-(गुस्से से) नहीं, मेरे राज्य में आप मनमानी न करने पावेंगे। विक्रमसिंह-(गुस्से से) विक्रम सोलंकी के रूपनगर में रहते तुम मनमानी न करने पाओगे। रामसिंह-मैं राजा हूँ। विक्रमसिंह-अनीति करोगे तो राजा नहीं रहने पाओगे। रामसिंह-मैं आपको गिरफ्तार करता हूँ। (पुकार कर) कोई है ? (दो सेवक सिपाही बात हैं) रामसिंह-इन्हें बाँध लो। विक्रमसिंह-(हंसकर) क्या कहने हैं। (तलवार सूतकर) जिसमें दम है वह आगे आये। (दोनो सिपाही ठिठक जाते हैं) रामसिंह-बदज्जातों ! क्या देखते हो आगे बढ़ो । विक्रमसिंह-तुम खुद ही क्यों नहीं आगे बढ़ते । समसिह-(तलवार सूतकर) यही सही। तो राजा के अपमान का फल चखो।