पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१५२

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१३७ . दृश्य] तीसरा अंक विक्रमसिंह-यह आपने कब पूछा ? रामसिंह-अच्छा अब सही । कहिए, आपने क्यों उसका सिर काट लिया? विक्रमसिंह-वह देवी के मन्दिर के सिंह द्वार पर बैठा स्त्रियों को घूर रहा था। मैंने जब उसे चले जाने को कहा तो वह गुस्ताखी कर बैठा। विक्रमसिंह सोलंकी को यह सहन कहाँ ? झट से तलवार सूती और खट से भुट्टा सा सिर उड़ा दिया । बस इतनी ही सी तो बात है महाराज रामसिंह-आप हमारे काका है सो क्या मेरे राज में मनमानी करेंगे। विक्रमसिंह-तुम राजा हो गये सो क्या अपने बड़े-बूढ़ों को कुछ भी न समझोगे धर्म का तिरस्कार करोगे। मर्यादा और नीति सबको धता बताओगे? रामसिंह-यह तो खूब रही। आप क्या मुझ से कैफियत तलब करेंगे। मुझ से ? राजा से ? विक्रमसिंह-क्यों नहीं ? तुम्हें राजा बनाया किसने है, हमी ने न ? अगर तुम सत्य कर्म से राज-काज करोगे तो राजा, नहीं तो जैसे हमने तुम्हें राजा बनाया है उसी तरह राज्य से उतार भी देंगे। "