पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१६७

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राजसिंह [तीसरा गया। वह तिल-तिल कट कर गिरा । वहाँ वह शाही बन्दों की लाशों के ढेर पर हमेशा के लिये सोया पड़ा है। उसकी तलवार टूट गई है। मगर उसकी मूंठ उसकी मुट्ठी में अब भी कस कर जकड़ी बादशाह-रूपनगर अब यहाँ से कितनी दूर है ? दिलेर खाँ-हुजूर, तीन दिन की मंजिल और है। बादशाह-मगर शादी की साइत तो कल है। दिलेरखॉ कल तक वहाँ पहुंचना नामुमकिन है । फौज थकी हुई, सुस्त और बर्वाद है । उसको तरतीब नहीं दी जा सकती। फिर, दुश्मन हालांकि पायमाल हो चुके हैं- फिर भी उनका खतरा बना हुआ है। बादशाह-जो कुछ भी हो-मगर इस मूजी जगह से फौरन लश्कर कुँच करना चाहिए और रूपनगर हमारे पहुंचने की खबर भिजवा देना चाहिए। दिलेर खाँ जो हुक्म ! मगर मुझे कुछ दाल में काला नजर आता है। बादशाह-यानी। दिलेर खाँ-मेवाड़ की फौज का शाही सवारी को रास्ते में अटकाना किसी खास मकसद से ही हो सकता है। बादशाह-तुम क्या कहना चाहते हो?