पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१६८

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दृश्य] चौथा अंक १५३ दिलेर खाँ यही, कि रूपनगर के राजा ने दगा की है। उसने इधर हमें बुलाया है-उधर राना को हमारी घात में लगा दिया। बादशाह- (गुरसे से बचैन होकर ) अगर ऐसा हुआ तो मैं रूप- नगर और उदयपुर दोनों ही को खत्म कर दूंगा। दिलेर खाँ-बहतर, तो अब जहाँपनाह आराम करें। बादशाह-सुबह ही लश्कर का फँच होगा। दिलेर खाँ-जो हुक्म । (जाता है।)