पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१७३

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१५८ राजसिंह [चौथा येह विरद रजपूत ाथ बाँटे कर जोरैं। येह विरद रजपूत एक लाखाँ बिच ओरें। जम राण पाये पाछा घरे देखि मतो अवधूतरो। करतार हाथ दीधी करद येह विरद रजपूतरो । ( पर्दा गिरता है)