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पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१७४

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- पाँचवाँ दृश्य (स्थान-उदयपुर का राजमहल। कुवर जयसिंह की रानी कमल-कुमारी अपने शयन कक्ष में | समय-रात्रि । कोई नैपथ्य में गा रहा है। रानी ध्यान से सुन रही है।) झिलमिलाती रात आई। साँझ की आभा सुनहरी छा रही थी दिव्य नभ में। भानु तपकर अस्त होने जा रहा था श्रान्त पथ मे। कालिमा को कोर जाप्रत जो हुई क्या बात आई। झिलमिलाती रात आई। व्योम व्यापक में उजागर दिव्य तारे भर रहे हैं। मालिनी के माल पर क्या हास्य सा ये कर रहे हैं। ज्योति ने मानो तमिश्रा भेदने की घात पाई। मिलमिलाती रात आई। कौन पक्षी चिर विरह का गीत गाता है कहाँ से ? प्राण का क्रन्दन सुनाता कौन आता है कहाँ से ? राग छलकाती हुई विश्रान्ति की तह रात आई । झिलमिलाती रात आई। रानी-श्राकाश की ओर देखकर) अनन्त आकाश में ये उज्ज्वल नक्षत्र कैसे भले मालूम देते हैं। न जाने ये कितनी