पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१८

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. . दृश्य] पहिला अंक काशी में हमने क्या भाड़ मौका है। शास्त्र-पुराण नहीं पढ़ा । हुँह !! सब-अजी झगड़ा क्या है ? पहिला नागरिक-रत्नतुला। रत्नतुला। सब-कैसी रत्नतुला? पहिना-नहीं जानते, हमारे महाराणा राजसिंह ने श्री एकलिङ्ग में जाकर रत्नतुला की है। सब-हमारे महाराणा साक्षात् देवता के अवतार हैं। उनके शरीर में शिव का तेज है, वे जो करें सो थोड़ा। पहिला नागरिक-पर मैं कहता हूँ, किसी ने सुना है कि कलियुग में किसी गजा ने रत्नतुला दान की हो । सब-नहीं सुना-नहीं सुना । स्वर्ण तुला । चाँदी की तुला सुनी है। रत्न तुला नहीं सुनी। पहिला नागरिक-(आँखें तरेर कर ब्राह्मण से) तुमने सुना है कहीं ? कलियुग में ब्राह्मण-(कानों पर हाथ धरके) नारायण नारायण, नहीं सुना। पहिला-सतयुग में, त्रेता में, द्वापर में। ब्राह्मण-नहीं सुना भाई नहीं सुना। पहिला-कहीं पुराण-शास्त्र में देखा-पढ़ा है ? ब्राह्मण नहीं पढ़ा नहीं देखा । रत्नतुला करके श्री महाराणा राजसिंह ने अपूर्व कृत्य किया है। पहिला-यही तो हम कहते थे, तुम बिगड़े क्यों ?