पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२०१

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१८६ राजसिंह [पहला गई । इसी भाँति गोवर्धन स्थित श्रीनाथ की मूर्ति को जब लेकर गोस्वामी बूंदी, कोटा, पुष्कर, किशनगढ़, जोधपुर गये पर किसी ने आश्रय नहीं दिया । अन्त में गोसाई को मैंने वचन दिया कि मूर्ति को मेवाड़ में ले आओ। मेरे १ लाख सीसोदियों का सिर काटने पर ही औरंगजेब उसे विध्वंस कर सकता है। और वह सीहाड़ में स्थापित कर दी गई है। झाला चन्द्रसेन जय हिन्दुपति हिन्दुसूर्य महाराणा की । महा- राज का यह कार्य मेवाड़ की प्रतिष्ठा के योग्य ही हुआ है। राणा-फिर हमने धर्म संकट में पड़ कर बादशाह की मंगेतर रूपनगर की राजकुमारी चारुमती का हरण करके उसे ताराज कर दिया, क्योंकि राजपूत बाला ने शरण चाही थी। रावत केसरीसिंह -यह तो क्षत्रियोचित कार्य ही हुआ है। राणा-परन्तु सब से अधिक नाराजी तो बादशाह के मन में मेरे उस खत से हुई है जो मैंने जजिया के विरुद्ध उसे लिखा है और उसे चुनोती दी है कि पहिले वह मुझ से वह कर ले। यह अपमान जनक कर बादशाह अकबर ने बन्द कर दिया था। १०० वर्ष पीछे अब औरंगजेब ने इसे जारी कर सख्ती के साथ वसूल किया है, जो न्याय और नीति के विरुद्ध है । राज-