पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२०३

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१८८ राजसिंह [पहिला शाहजादा अकबर को इधर रवाना किया है। इस लिये अब झटपट हमें अपने कर्तव्य को सोच लेना चाहिये। सब सर्दार-कर्तव्य हमने सोच लिया है । हम युद्ध करेंगे और बादशाह के दांत खट्ट करेंगे। पुरोहित गरीबदास-आज्ञा पाऊँ तो निवेदन करूँ । बादशाह के पास सेना बहुत है, और साथ में फिरंगियों का तोपग्वाना भी है। इसलिये बराबरी का युद्ध करना ठीक नहीं है। महाराणा प्रतापसिंह और उदयसिंह ने भी ऐसा ही किया था। वे आक्रमण के समय नगर छोड़ पहाड़ों में चले गये थे। अवसर पाते ही मुग़लों पर छापा मारते और शत्रुओं के दांत खट्ट करते थे। इसी से बादशाह को परास्त होना पड़ा था। महाराणा अमरसिंह ने भी यही नीति ग्रहण की थी। इसलिये आप भी यही नीति ग्रहण करें और दुर्गम अरावली की सहायता से शत्रु पर विजय प्राप्त करे । राणा-राजपुरोहित का विचार बहुत उत्तम है। हमें विश्वास है कि हम शत्रु को पहाड़ी घाटियों में घेर कर भूग्बों मार डालेंगे। उधर हम शाही मुल्क को भी लूट कर बर्बाद करेंगे। झाला जसवन्तसिंह-अन्तदाता का विचार अति उत्तम है। राणा-इस समय हमारे पास २० हजार गवार और २५ हजार पैदल हैं। इसके सिवा ५० हजार भील