पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२१२

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चौथा दृश्य (स्थान-उदयपुर । शाहजादा अकबर की छावनी । समय-रात्रि) अकबर-आप यह कहते क्या हैं जनाब ! तहब्बुरखां जो कहता हूँ बिल्कुल सच है। आज नौ रोज से हसनअलीखाँ और उनकी फौज का पता नहीं। अकबर-फौज को क्या सांप सूघ गयाया जमीन निगल गई। तहब्बुरखाँ खुदा जाने, तिस पर खुदा की मार, मालवे से मन्दसौर और नीमच के रास्ते १० हजार बैलों पर बंजारे रसद ला रहे थे। वे सब रास्ते में भीलों ने लिये अकबर-लूट लिये ? इसके माने यह कि हमें कल से भूखों मरना होगा। तहब्बुरखाँ यकीनन, क्योंकि अब रसद कतई नहीं है । न कुओं और तालाबों में पानी है। अकबर-(हाथ मलकर) तो हम चूहेदानी में बन्द चूहों की तरह मरेंगे ? आप अभी नाके नाके पर थाने बैठाइये और हसनअली की फौज को तलाश कीजिए। तहब्बुरखाँ-कोई शाही अफसर थानेदारी कुबूल नहीं करता, क्योंकि दुश्मन बाज की तरह टूटकर थानों को लूटकर और मार काट करके न जाने कहाँ भाग जाते हैं। ,