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२ १६६ राजसिंह [तीसरा जहाँ दुश्मन नजर आये काट डालो । आखिर वह कहाँ पनाह लेगा। तमाम मेवाड़ को कुचल कर बर्बाद कर दो, कि फिर यह सिर न उठा सके। तहब्बुर खाँ-जो हुक्म जहाँपनाह ! बादशाह-सुनो, तमाम सिपहसालारों को हुक्म भेज दो कि जहाँ जो मन्दिर शिवाला नजर आवे जमीदोज कर दिया जाय । गाँव जलाकर खाक कर डाले जायें और औरत मर्द जो मिले कत्ल कर डाला जाय । तहब्बुर खाँ-जो हुक्म । (जाता है) बादशाह-(स्वगत हाथ मलता हुआ) इस बार मैं इन मशरूर राजपूतों से निपट लेना चाहता हूँ। चित्तौड़ जब तक राजपूताने की छाती पर सिर उठाए खड़ा है, मुगलों का जजाल फीका है। जन्नतनशीन अकबर शाह से लेकर अब तक की तमाम कोशिशें इसे कब्जा करने की बेकार गई। इस बार मैं मेवाड़ को खतम कर दूँगा। आलमगीरी कहर से वह बच न पाएगा।