पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२१४

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पाँचवाँ दृश्य (स्थान-देवरी की घारी। एक पहाड़ की तलहटी में शाही छावनी पड़ी है। फौजदार-नायब इक्काताज खॉ और उनके दो मुसाहिब पीरबख्श और मियाँ कमरुद्दीन अगल-बगल बैठे हैं । नायब साहेब मसनद पर बैठे पेचधान पी रहे हैं। एक खिदमतगार घोड़ा लिए सामने खड़ा है । नायब साहेब पेचवान पर अम्बरी तम्बाकू पी रहे हैं । दो-चार सिपाही इधर-उधर खड़े हैं। फासिले पर लड़ाई का शोर-गुल हो रहा है।) नायब-कहो मियाँ पीरबख्श इस वक्त अगर दुश्मन यहाँ आ जाय तो तुम क्या करो ? पीरबख्श-जनाब मजाल है ? नायब-ताहमा पीरबख्श तो मैं उन्हें कच्चा ही चबा जाऊँ। नायब-बहुत खूब, और तुम मियाँ कमरुद्दीन । कमरुद्दीन-क्या मैं ? मैं उन्हें इतनी गालियाँ दूं, इतनीगालियाँ दूं कि बच्चू जी को छटी दूध ही याद आजाय । नायब-यह भी ठीक है। तुम्हारे जैसे बहादुर मुसाहिबों के पास रहते फिर गम किस बात का। मगर खैर, एहतियातन हमारी तलवार म्यान से बाहर निकाल कर हमारे पास रख दो और बन्दूक तमंचा भर कर लैस कर लो।