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पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२१५

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२०० राजसिंह [पाँचवाँ खिदमतगार-(तलवार नंगी करके पास रखकर) जो हुक्म बन्दा नबाज । (बन्दूक में गज डालता है) उसमें से मिट्टी निकलती है। नायब-वाह, बन्दूक में से मिट्टी कैसे निकली ? खिदमतगार-हुजूर, उसमें दीमक ने घर कर लिया है। पीरबख्श-दीमक का भी क्या क्लेजा है। कमरुद्दीन-और अगर गोली लग जाय तो ? नायब-मियाँ पीरबख्श, तुम बंदूक का निशाना लगा सकते हो? पीरबख्श-हुजूर, अपने मुंह से क्या कहूँ। एक बार कुत्ते से हमारी लाग डाट हो गई। खुदा की कसम, हमसे कोई ११-१२ क़दम पर था। धरके जो बंदूक दागता हूँ तो पों-पों करके भागता ही नजर आया। नायब-(हँस कर ) क्या कहते हैं। बड़े ही बहादुर हो। पीरबख्श-हुजूर, इतनी इज्जत न करें, गुलाम जरा इस वक्त रंज में है-सोचता हूँ हुसेनी की माँ- नायब-ओह-वह मजे में पुलाव पका रही होगी । हाँ ज़रा बन्दूक इन्हें। (खिदमतगार बन्दूक देता है उसे उलट पुलट कर देखने के बाद धीरे से नीचे रख देता है) नायब-उड़ती चिड़िया पर निशाना लगा सकते हो ? पीरबख्श-हुक्म हो तो आस्मान को भून कर रख दूँ? ना यब-चिड़िया पर निशाना लगाओ।