पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२२१

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सातवाँ दृश्य स्थान-उदय सागर-बादशाह की छ वनी-बीच मे बादशाह का खीमा है। सन्तरी पहरे पर है। बादशाह मसनद पर बैठे हैं। अमीर अगल बगल हैं।) बादशाह अकबर से मुझे ऐसी उम्मीद न थी। उस नामुराद ने अपना नाम डुबोया । तहब्बुरखां-जहांपनाह, शाहजादा जो कुछ कर सकते थे वह उन्होंने किया। मगर उन्हें बंगाल और दक्षिण की शाही फौज की मदद नहीं मिली। बादशाह-इसके लिये कौन जिम्मेदार है ? तहब्बुरखा-हुजूर मदद मिलना मुमकिम ही म था, राना बीच में इस चालाकी से जम कर बैठा कि लाचार शाही कौज सिकुड़ी बैठी रही । केमार जयसिंह ने आधी रात को एकाएक फौज पर टूट कर शाहजादे की तमाम फौज को काट डाला। बादशाह-काट डाला ! शाही फौज गोया मूली थी। तहब्बुरखां-हुजूर, उसे न रसद मिलती थी न कुमुक । दहशत और घबराहट से उसकी हिम्मत पश्त हो चुकी थी। बादशाह-तो शाहजादा अकबर अब गुजरात ओर गया है। तहब्बुरखां जी हां, जहांपनाह, उनकी तमाम कौज बर्बाद हो गई है। उधर शाहजादा आज बड़ी मुसीबत में है। ।