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पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२८

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पहिला अंक दृश्य १३ रावत रघुनाथसिंह-मैं उससे युद्ध करूंगा। रत्नसिंह- उसमें आपकी पराजय होगी। रावत रघुनाथसिंह-जो हो सो हो। रत्नसिंह-व्यर्थ रक्तपात होगा। रावत रघुनाथसिंह-मैं उसका जिम्मेदार नहीं। रत्नसिंह-गृहकलह मे राज्य की शक्ति क्षीण होगी। रावत रघुनाथसिंह-उसका फल राणा भोगेंगे। रत्नसिंह-नहीं उसका फल मेवाड़ को भोगना होगा। पिताजी मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। रावत रघुनाथसिंह-तुम क्या करोगे? रत्नसिंह-मैं आपको युद्ध न करने दूंगा। रावत रघुनाथसिंह-पर मैं युद्ध करूँगा। रत्नसिंह-तब मैं राणा जी की ओर से आप से लडूंगा। रावत रघुनाथसिंह-तुम मुझसे लड़ोगे ? तुम ? मेरे पुत्र ? राजपूताने में किसी ने सुना है बेटा बाप से लड़े। रत्नसिंह-अब लोग सुन लेंगे रावत रघुनाथसिंह-यही तुम्हारी पितृभक्ति है ? रत्नसिंह-जी हाँ पिता जी ! आपके सम्मान की रक्षा के लिये मैं आपसे लडूंगा। रावत रघुनाथसिंह-मेरे सम्मान की रक्षा के लिये ? -रलसिंह-जी हाँ, उससे मेवाड़ के सर्दार युद्ध से विरत रहेगे और यह रक्तपात टल जायगा।