चौथा दृश्य ( स्थान रूपनगर का किला । समय-मध्यान्ह- राजा रूपसिंह और प्रधान बैठे हैं) राजा-महाजन राघवदास ने क्या लिखा है ? प्रधान-महाराज ! महाराणा ने मांडलगढ़ अधिकार में कर लिया और २२ हजार रुपये दण्ड में लिये। राजा-राणा का इतना साहस ? मांडलगढ़ हमें शाही जागीर में मिला है। मैं इसे सहन नहीं कर सकूँगा। राघवदास ने इतनी जल्दी किला दे दिया ? किला काफी दृढ़ था। राघवदास ने दगा तो नहीं की। दीवान-नहीं महाराज ! उसने एक मास तक जमकर युद्ध किया और जब तक किले में रसद और सेना रही, उसने मोर्चा लिया। महाराणा राजसिंह ने स्वयं किले पर आक्रमण किया था। राजा-राणा राजसिंह के पर निकले हैं। एकलिङ्ग पर रत्नतुला कर के उसका गर्व बढ़ गया है। पर मैं उसके गर्व को भंजन न करूं तो मेरा नाम रूपसिंह नहीं। हमें बादशाह के पास अर्जी भेजनी चाहिये। दीवान-जैसी आज्ञा, पर सेवक का ख्याल है कि अर्जी भेजने से कुछ लाभ न होगा। नया बादशाह अपनी ही बहुत
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