पृष्ठ:राजसिंह.djvu/६५

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. Aro तीसरा दृश्य (स्थान-दिल्ली का रगमहल । शाहजादी जेबुन्निसा का खास कमरा समय-प्रातःकाल । शाहजादी जेबुन्निमा अकेली अस्तव्यस्त अपने कमरे में बैठी है।) शाहजादी-(स्वगत) रुए जमीन के इस वहिश्त की-जहाँ हवा को भी विना हुक्म अन्दर आने की ताब नहीं, श्राज मैं मलिका हूँ। अब्बा पर रोशनआरा के बड़े-बड़े अहसान । कुछ दिन इसी से उसने रंग महल पर हकूमत की। बादशाह आलमगीर नहीं रोशनआरा बेगम हैं। मगर वे दिन लद गये। मेरी बेचारी तीन बहनों की किस्मतें अब्बा ने मेरे बदकिस्मत चचाजात कैदी भाइयों के साथ शादी करके बांध दीं। मगर मैं वह पंछी नहीं जो कैद होकर रहूँ। बसन्त में भौंरा नये-नये फूलों का रस लेता है, गूंजता है, वह कैसा प्यारा लगता है । मगर इस अटूट वरिया के न थमने वाले बहाव का अंजाम क्या होगा ? (कुछ सोचकर ) क्या परवाह है, मैं जेबुन्निसा हूँ, मुगल बादशाहों के इस रंगमहल की रानी मैं हूँ। (बांदी भाती है) "