सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजसिंह.djvu/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दूसरा अंक. दृश्य आज खण्डहर हो गये। देवताओं के अङ्ग खण्ड- खण्ड हो गये। पर कोई हिन्दुओं की लाज रखने वाला माई का लाल ऐसा नहीं जो इस पाप से भारत का उद्धार करे। भील-(उत्तेजित होकर) ऐसा न कहो। धरती कभी वीरविहीन नहीं होती है। ऐसा ही एक वीरवर अभी भी पृथ्वी पर है। ब्राह्मण-कौन है वह ? भील-महाराणा राजसिंह, मेवाड़ का अधिपति । हिन्दुसूर्य । ब्राह्मण-मैंने उसका यश सुना है और मैं वहीं जा रहा हूँ। क्या शरण मिलेगी? भील-अवश्य मिलेगी। तुम्हारे साथ कौन देवता हैं। ब्राह्मण-द्वारिकाधीश हैं। हम लोग गोवर्धन से भागे आ रहे हैं भील-ब्राह्मण देवता, स्नान पूजन करके देवता को भोग लगा निर्भय विश्राम करो। देवता की प्रतिष्ठा मेवाड़ की वीर भूमि मे अवश्य होगी। ब्राह्मण-प्रसन्न होकर) भगवान आपकी वाणी सुफल करे। (आँख मीच कर भगवान की प्रार्थना करता है ) ( पर्दा अदलता है)