पृष्ठ:राजसिंह.djvu/८१

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६६ राजसिंह सातवॉ राणा-(उत्तेजित होकर ) हाथी से कुचलवा दिया। दिल्ली के दरबार में इतने हिन्दू राजा हैं, किसी ने कुछ नहीं किया ? भीमसिंह-कुछ नहीं किया महाराज ! किसी ने यूँ तक न की। राणा-हाय रे भारत के हिन्दुओं के दुर्भाग्य ! गुंसाई कहाँ २ गये थे ? भीमसिंह-महाराज ! वे बूंदी, कोटा, पुष्कर, किशनगढ़ और जोधपुर गये थे, पर औरंगजेब के भय से किसी ने मूर्ति को आश्रय नहीं दिया। अब गुंसाई सब ओर से निराश हो मेवाड़ की शरण आये हैं। राणा मेवाड़ मे शरणागत अभय है। उन्हे कहो-मेरे एक लाख राजपूतों के सिर काटने पर औरंगजेब मूर्तियों के हाथ लगा सकेगा। श्रीनाथ जी की मूर्ति की प्रतिष्ठा सीहाड़ में और श्री द्वारिकाधीश की मूर्ति की कांकरोली में करा दी जायगी । मूर्ति की पूजा भोग के लिए समु- चित गांवों की व्यवस्था कर दी जायगी। तुम दोनों भाई मूर्तियों को आदर मान से राज्य में ले आओ। भीमसिंह-जो आज्ञा- (जाता है)