पृष्ठ:राजसिंह.djvu/८०

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सातवाँ दृश्य (स्थान-उदयपुर का राजमहल । महाराणा और कुंवर जयसिंह तथा भीमसिंह । समय-रात्रि) राणा-कौन हैं वे? कुँवर जयसिंह-गोवर्धन के गुंसाई हैं। उनके साथ श्रीद्वारिका- धीश और श्रीनाथ जी की मूर्ति है । महाराज ! वे सब ओर से निराश होकर आपकी शरण आए हैं। राणा-पापी बादशाह ने क्या देवमन्दिरों को भी विध्वंस करा डाला है ? भीमसिंह जी हाँ, उसके सैनिक राज्य भर के मन्दिरों को ढहा रहे हैं । काशी विश्वनाथ के मन्दिर को ढहाकर उसने मस्जिद बनवा ली है। राण-तो भारतवर्ष के हिन्दू इतने पतित हो गये हैं कि चुपचाप सब सहन करते हैं। क्या उनकी रगोंमें रक्त नहीं है ? कुँवर जयसिंह-यही नहीं ! उसने जजिया भी लेना शुरू कर दिया है। राणा-यह तो अत्यन्त अपमानजनक है । हिन्दुओं ने इसका भी विरोध नहीं किया ? कुँवर जयसिंह-किया था, इस अन्याय के विपरीत अर्ज गुजा- रने दिल्ली के हिन्दू जामा मस्जिद के आगे जमा हुए थे, बादशाह ने उन्हें हाथी से कुचलवा दिया।