पृष्ठ:राजसिंह.djvu/८७

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नवाँ दृश्य (स्थान-उदरपुर का राजमहल । पाटवीकुमार जयसिह का माल । जयसिह की रानी-कमलकुमारी अपने कक्ष में मस्त्रियों माहित गा रही है। समय-प्रातःकाल ।) मत देर करो सजनी अब झटपट नूतन साज सजाओ। मेरे मूने मनमन्दिर में नूपुर सखी बजाओ । नव बसन्त आया आली-~-फूलों से मुझे रिझाओ । जीवन तरंग की झूला में तुम भूलो मुझे भुलाओ। गाकर मधु गायन कोकिल सर में सु वसन्त बुलाओ। प्यासे प्राणों को सखि छक कर जीवनमुधा पिलाओ । उर की दीपशिखा से जगमग अनगित दीप जलाओ। रानी कमलकुवर-तारों से भरी इस रात में जीवन कैसा स्निग्ध मालूम होता है। प्राणों में मोहक स्नेह जैसे फूटा पड़ता हो। सखिओ ! यह जीवन इतना सुन्दर क्यों है? एक सखी-इसलिये कि यही जीवन संमार का केन्द्र है। रानी-सच है, जैसे प्रकृति में प्रभात, मध्याह्न, अपराह्न और सन्ध्या होती है उसी प्रकार जीवन में भी। कहो तो, जीवन में कौनसा क्षण सबसे सुन्दर होता है।